पुरातत्वों को माने तो
ये बात पुरा पाषाण काल की है
|
ऐसा कहा जाता है कि जिस समय मानव जाती का विकास हुआ भी नहीं था,
जब मानव भोजन की तलाश में भटकता था और गुफा में रहता था
तभी एक दिन बिजली कड़की और उसे कुछ समझ नहीं आया
फिर जब उन्होंने अपनी औजारो को बनाने के लिए पत्थर को पत्थर से तोड़ रहे थे तभी एक आग की लारी
पत्ता
पर गिरी और आग लग गयी
उस समय भाषा का विकास नहीं हुआ था
और लोग केवल सांकेतिक और हू… हू…. जैसे भाषा का प्रयोग करते थे
जब आग जली तो वो उसे पकड़ना
चाहते थे पर आग की गर्मी के कारण उसे पीड़ा हुई और वे आह ! आह ! करने लगे तब से कोई उसे छूने का प्रयास करता तो वे लोग उसे आह ! करते थे तब से
और आगे चल कर भाषा का विकास हुआ और लोग उसे आग कहने लग गए |
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें